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         बारिश

 
 
आँगन आँगन हर घर बारिश
बरसी खूब झूम कर बारिश

तब बरसी और अब ये बरसी
पत्थर जैसी सर पर बारिश

टूटे घर की बन जाती है
बरसातों में छप्पर बारिश

मुफ़लिस की कुटिया में अक्सर
गीले करती बिस्तर बारिश

टिप टिप टिप की तान सुनाती
टीन की छत पर खुल कर बारिश

कच्ची मिट्टी वाले घर को
खूब रुलाती अक्सर बारिश

नाच रहे हैं पेड़ झूम कर
लाती हरियाली हर बारिश

सूखे ताल तलइयाँ भर कर
खूब गिरी छज्जे पर बारिश

दिन भर होती बूँदा बाँदी
ख़ूब अनोखा मंज़र बारिश

‘आभा’ के आँगन में जैसे
बैठ गई है छुप कर बारिश

- आभा सक्सेना ‘दूनवी’
१ अगस्त २०२५

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