आ गया सावन
सजीवन,
हैं बरसते प्यार के घन !
दूर खेतों में सरस सुन्दर
मुसकराती तृप्त हरियाली,
डाल पर कलियाँ हँसीं चंचल
छलछलाकर रस भरी प्याली,
तुम न जाओ दूर मुझसे
प्राण में आ कर समाओ !
वायु शीतल बह रही है,
कान में कुछ कह रही है !
स्वर मिलन-संगीत खग-उपवन,
भू-हृदय में हो रही धड़कन,
सब खिँचे जाते जगत के कण
मूक मनहर सृष्टि आकर्षण,
भावना ले द्रोह की, तुम
यों विमुख होकर न जाओ !
-महेन्द्र भटनागर
३० जुलाई २०१२ |