|  | गांधी के प्रति हे नग्न देह, हे अस्थि पुंजशत-शत प्रणाम, कोटिक प्रणाम
 मानव पीड़ा का बोझ लिए
 दर्शाया तुमने
 घोर तिमिर में सत्य मार्ग
 हे दलित जनों के महाप्राण
 शत-शत प्रणाम, कोटिक प्रणाम।
 ब्रह्मत्व को भी खींच भू पर
 अनंत को लघु में पिरो कर
 सर्वे-भवंति सुखिन: का
 स्वप्न कराया साकार
 हे भारत आत्मा के मंत्राकार
 शत-शत प्रणाम, कोटिक प्रणाम।
 सत्ता की लोलुप पाशविकता से
 विचलित हो
 हम भूले तुमको बार-बार
 जीवन मूल्यों की भौतिकता में
 दफनाया तुमको कई बार
 अमर अजेय तुम
 तेरी वाणीं पर
 चला न कोई इंद्र जाल
 हे मानव संस्कृति के मूर्तिमान
 शत-शत प्रणाम, कोटिक प्रणाम।
 - शीतल श्रीवास्तव  |