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शुभ दीपावली

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दीपावली मनाऊँ

जिस दिन सारा जग प्रकाश से सराबोर हो
जी में है उस दिन ही दीपावली मनाऊँ
रहे न कोई कोना जब तम से आच्छादित
मन करता है उस दिन ही मैं दीप जलाऊँ।।

मानवता का चिर प्रकाश फैले हर उर में,
मानव कोई हीन भावना से न ग्रसित हो
अंतर में हो देश प्रेम की उत्कट इच्छा
त्याग और निष्ठा से हर मन उदभासित हो
नव प्रकाश से जिस दिन धरा गगन ज्योतित हो,
उस दिन ही मैं तेरा आरति दीप जलाऊँ।
जी में है उस दिन ही दीपावली मनाऊँ।।

धन-दौलत जब रहे न मानव की परिभाषा
हाथों की मेहनत ही जब पूजा कहलाए
'विश्व बंध' का पाठ पढ़ें और करें अनुसरण
अपना भाग्य विधाता मानव खंद बन जाए
उस दिन ही आराध्य देव तेरी मूरत पर
जी में आता है निज पूजा पुष्प चढ़ाऊँ।
जी में है उस दिन ही दीपावली मनाऊँ।।

जब न धरा का कोई बेटा भूखा सोए
औ' न किसी बेटी की इज़्ज़त लूटी जाए
जब न किसी मां की हड्डी से चिपक ठिठुर कर
कोई बालक रो-रो अपनी रात बिताए
उस दिन ही 'जग के स्वामी' निज थाल सजाकर
जी में आता है मैं तेरा भोग लगाऊँ।
जी में है उस दिन ही दीपावली मनाऊँ।।

-उमाशंकर वर्मा 'साहिल'
16 अक्तूबर 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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