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शुभ दीपावली

अनुभूति पर दीपावली कविताओं की तीसरा संग्रह
पहला संग्रह
ज्योति पर्व
दूसरा संग्रह दिए जलाओ

दिया जलता रहे

यह ज़िन्दगी का कारवाँ, इस तरह चलता रहे
हर देहरी पर अँधेरों में दिया जलता रहे

आदमी है आदमी तब ,जब अँधेरों से लड़े
रोशनी बनकर सदा ,सुनसान पथ पर भी बढ़े

भोर मन की हारती कब, घोर काली रात से
न आस्था के दीप डरते, आँधियों के घात से

मंज़िलें उसको मिलेंगी जो निराशा से लड़े
चाँद- सूरज की तरह, उगता रहे ढलता रहे

जब हम आगे बढ़ेंगे,  आस की बाती जलाकर
तारों भरा आसमाँ, उतर आएगा धरा पर

आँख में आँसू नहीं होंगे किसी भी द्वार के
और आँगन में खिलेंगे, सुमन ममता प्यार के

वैर के विद्वेष के कभी शूल पथ में न उगें
धरा से आकाश तक बस प्यार ही पलता रहे

रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु
9 नवंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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