दीप जलता है!
सरल शुभ मानवी संवेदना का स्नेह भरकर
हर हृदय में दीप जलता है!
युग-चेतना का ज्वार
जीवन-सिंधु में उन्मद मचलता है!
दीप जलता है!
तिमिर-साम्राज्य के
आतंक से निर्भय
अटल अवहेलना-सा दीप जलता है!
जगमगाता लोक नव आलोक से,
मुक्त धरती को करेंगे
अब दमन भय शोक से!
लुप्त होगा सृष्टि बिखरा तम
हृदय की हीनता का,
क्योंकि घर-घर
व्यक्ति की स्वाधीनता का
दीप जलता है!
बदलने को धरा
नव-चक्र चलता है!
नहीं अब भावना को
गत युगों का धर्म छलता है!
सकल जड़ रूढ़ियों की
शृंखलाएँ तोड़
नव, सार्थक सबल
विश्वास का
ध्रुव-दीप जलता है!