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शुभ दीपावली

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दीप जलता है

दीप जलता है!
सरल शुभ मानवी संवेदना का स्नेह भरकर
हर हृदय में दीप जलता है!
युग-चेतना का ज्वार
जीवन-सिंधु में उन्मद मचलता है!
दीप जलता है!

तिमिर-साम्राज्य के
आतंक से निर्भय
अटल अवहेलना-सा दीप जलता है!

जगमगाता लोक नव आलोक से,
मुक्त धरती को करेंगे
अब दमन भय शोक से!

लुप्त होगा सृष्टि बिखरा तम
हृदय की हीनता का,
क्योंकि घर-घर
व्यक्ति की स्वाधीनता का
दीप जलता है!

बदलने को धरा
नव-चक्र चलता है!
नहीं अब भावना को
गत युगों का धर्म छलता है!

सकल जड़ रूढ़ियों की
शृंखलाएँ तोड़
नव, सार्थक सबल
विश्वास का
ध्रुव-दीप जलता है!

--महेन्द्र भटनागर
२० अक्तूबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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