आँगन-आँगन दीप जलाओ,
दीपों का त्योहार मनाओ!
स्वर्णिम आभा घर-घर बिखरे
मनहर आनन, कन-कन निखरे
ज्योतिर्मय सागर लहराए
काली-काली रात सजाओ!
निशि अलकों में भर-भर रोली
नाचें जगमग किरनें भोली
आलोक घटा घिर-घिर आए,
सारी सुधबुध भूल नहाओ!
हर उर अभिनव नेह भरा हो
युग-युग रोयी धन्य धरा हो,
चलो सुहागिन, थाल उठाओ
नभ-गंगा में दीप बहाओ!
-महेन्द्र भटनागर
२० अक्तूबर २००८
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