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शुभ दीपावली

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उजियार बहुत है

दूर उजालों की बस्ती है
पथ में भी अंधियार बहुत है।

नफ़रत नागफनी बन फैली
पग-पग हाहाकार बहुत है।
फिर भी ज़िन्दा है मानवता
क्योंकि जग में प्यार बहुत है।

अंधियारे से आगे देखो
सूरज है, उजियार बहुत है।
काँटों के जंगल से आगे
खुशबू भरी बयार बहुत है।

दीवारें मत खड़ी करो तुम
पहले से दीवार बहुत हैं।
नहीं गगन छू पाए तो क्या
मन का ही विस्तार बहुत है।

पूजा करना भूल गए तो
छोटा-सा उपकार बहुत है।

रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु
२७ अक्तूबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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