अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

   

       उजियारे के बीज


याद हैं तुम्हें
उस बेहद अँधेरी रात में
पहाड़ियों के पीछे वाले जंगल के
घने झुरमुटों में
मिले थे हमें
मुट्ठी भर जुगनू,
रोप दिए हैं मैंने
उनमें से कुछ सूने आंगनों में,
कुछ सीले मनों के बंद दरवाजों पीछे
और कुछ चुपके से रख आई हूं
रिसती आँखों की देहरी पर,
अँधेरे की कोख में ही हैं पलते
उजियारे के बीज
तभी न
मावस में दीपोत्सव मनाने की
है बनी रीत,
तो, आओ न
इस बरस उतारें नाव
अपने भीतर पलते बीहड़ अँधियारे में
और खोज ही लाएँ
एक टापू उजियारे का
करता आलोकित भवितव्य पथ
एक दीप स्तम्भ।

- नमिता सुंदर
१ नवंबर २०२३

   

अंजुमन उपहार काव्य चर्चा काव्य संगम किशोर कोना गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे रचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है