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								पर्व दीप का आ गया, लेकर यह सन्देश ।अन्तर्मन में भी तमस, रहे न किंचित शेष ।।
 
 दीपमालिका है सजी, गली-गली, घर-द्वार ।
 रात अमावस ने किया, दुल्हन-सा सिंगार ।।
 
 विषय विकारों से सदा, बढ़ता दुख का राज्य ।
 ज्ञान-दीप की ज्योति से, फैले सुख-साम्राज्य ।।
 
 वैमनस्यता-क्रूरता, हिंसा के भुजपाश ।
 पल में खुल जाएँ अगर, फैले प्रीति-प्रकाश ।।
 
 जीवन के संग्राम में, जो हो रहे निराश ।
 आशा का दीपक जला, दें हम उन्हें प्रकाश ।।
 
 - राजेन्द्र वर्मा
 १ नवंबर २०१८
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