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								ठान लिया नन्हें दीपों ने 
								करना तम संहार का 
								आज मनाएँ उत्सव हम सब 
								अँधकार की हार का 
								 
								दृढ़ संकल्पों की बाती में 
								प्राण रहे 
								घृत कर्मठता का उसमें 
								अविराम बहे 
								उम्मीदों की अनल से 
								जीवन दीप जला 
								तम का सीना चीर के 
								जो बिन रुके चला 
								 
								जीत उसी की होती है 
								यह नियम है संसार का 
								 
								चाह नहीं झिलमिल करते  
								इन तारों की 
								बस अम्बर तक आभा रही 
								सितारों की 
								मावस का तम कभी 
								मिटा पाए ये कब 
								प्रहरी बनकर दीप  
								जलें हैं मेरे सब 
								 
								समय आ गया प्रात रवि के 
								स्वागत का सत्कार का 
								 
								- सीमा
								हरि शर्मा 
								१ नवंबर २०१५  |