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                                 फिर 
								से राम हुए बनवासी 
								छायी सब पर आज उदासी  
								लक्ष्मण के पाँवों में छाले 
								फिर से समय-चक्र ने डाले। 
								रावण करता है मनमानी 
								छलता सीता को अज्ञानी 
								 
								हर रावण के अब विरोध में 
								हमको शोर उठाना है  
								रावण हमें जलाना है। 
								 
								कोई सोये यहाँ टाट पर 
								कोई मखमल और खाट पर। 
								कोई खाता बालूशाही 
								भूख मचाती कहीं तबाही 
								कहीं मनाते लोग दीवाली 
								कहीं बसी हैं रातें काली 
								 
								कैसे भी हो, भेदभाव यह  
								अब तो हमें मिटाना है  
								रावण हमें जलाना है। 
								 
								- रमेश
								राज 
								१ नवंबर २०१५  |