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								मेरे मन के नन्हें दीपक  
								तुम जलते रहना 
								 
								चलें हवाएँ डर मत जाना  
								उन्हें रोशनी से नहलाना 
								आ जाएँ जो पास तुम्हारे  
								उन्हें प्यार से तुम सहलाना 
								 
								उनको भी आ जाएगा  
								हौले हौले बहना 
								 
								दूर कहीं कोई दुखियारा  
								भूला भटका जो बेचारा  
								उसको सच्ची राह दिखाना 
								मिल जाएगा उसे किनारा 
								 
								वापस फिर वो भटक न जाए 
								ये उससे कहना 
								 
								अँधियारे को दूर भगाना 
								अंदर उजियारा बिखराना  
								उलझन भरी हुई रातों में  
								तुम बस धीरे से मुस्काना 
								 
								मन ये मेरा सीख जाएगा  
								सब दुख सुख सहना 
								 
								मेरे मन के नन्हें दीपक  
								तुम जलते रहना 
								 
								- डॉ. प्रदीप शुक्ल 
								१ नवंबर २०१५  |