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                                 आओ मिलकर दीप जलायें  
								प्यार के! 
								 
								एक दीप ऐसा हो जो तम  
								सारा पी जाये  
								एक दीप जो दु:ख की फटी  
								क़मीज़ें सी जाये  
								एक दीप कहीं बहें न आँसू  
								ना मन विकल तपे  
								कोई भी दु:ख के मनकों की  
								माला नहीं जपे  
								 
								सबके मंगलमय हो क्षण  
								त्यौहार के! 
								 
								एक दीप हँसते बच्चों की  
								स्वर लहरी का हो  
								एक दीप हर एक झोपड़ी  
								की देहरी का हो  
								एक बुद्धि का दीप नियति  
								गूँगी बहरी का हो  
								एक जागरण दीप नींद  
								अन्धी गहरी का हो  
								 
								दीप बड़ों के हों आदर  
								सत्कार के! 
								 
								ना कोई प्यास नीर को तरसे  
								ना कोई भूखा हो  
								ना उदास हो आँगन कोई  
								खेत न सूखा हो  
								सबकी झोली भरे सुखों से 
								सबको काम मिले  
								मेहनतकश को उसके श्रम का  
								पूरा दाम मिले  
								 
								सौ सौ दीपक जलें मधुर  
								व्यवहार के! 
								 
								सबमें उठे उमंग फुलझड़ी  
								खील बताशों की  
								गूँज ठहाकों की हो जैसे  
								बमों, पटाखों की  
								मुखड़े झिलमिल करें कि जैसे  
								दीप क़तारों में  
								ख़ुशियाँ ऐसे झरें कि जैसे  
								रंग अनारों में  
								 
								और दीप हों रूठों की  
								मनुहार के! 
								 
								- कृष्ण भारतीय 
								१ नवंबर २०१५  |