| 
                                 दीप 
								को मालूम था  
								वनवास हारेगा  
								जगमगाया  
								इसलिए 
								 
								ईश या इनसान 
								भू पर भाग्य सबका  
								एक जैसा  
								यह न होता बिन सताए  
								जान ले विधि  
								कौन कैसा  
								 
								ताज को मालूम था  
								संत्रास हारेगा  
								दिपदिपाया  
								इसलिए 
								 
								लोक ने सच को  
								समादृत ही किया है  
								सच यही है  
								कपट ने हर युग  
								उसी से हार मानी  
								जो सही है  
								 
								साँच को मालूम था  
								अट्टहास हारेगा  
								खिलखिलाया  
								इसलिए 
								 
								राम-सीता की  
								अयोध्या युग-युगों  
								पावन रहेगी  
								और लंका राख की  
								बस पीढ़ियों  
								भर्त्सना सहेगी  
								 
								धाम को मालूम था  
								खल-पाश हारेगा 
								झिलमिलाया  
								इसलिए 
								 
								- अश्विनी कुमार विष्णु 
								१ नवंबर २०१५  |