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								ओ दीप दिवाली के 
								मुझे लगता है 
								तुम्हारी लौ एक दिशा है 
								जो हमें रास्ता दिखाती है 
								हमेशा उज्जवल रहने का 
								ताज्जुब करती हूँ जब 
								तुम बाँट देते हो रोशनी को 
								दो हिस्सों में 
								फिर जगमगाने लगते हो 
								सितारों से 
								परन्तु यह बँटवारा 
								जीवन का अर्थ 
								समझा जाता है कि 
								अँधेरा और रोशनी दोनों ही 
								समाहित होते हैं कर्मों में 
								जो हमें पढ़ाते हैं पाठ जिन्दगी के 
								 
								ओ दीप दीवाली के 
								तुम्हारी बाती जब थरथराती है तो 
								वो भी एक सन्देश देती है कि 
								जिन्दगी एक किताब है और 
								उसके अलग- अलग पन्नों में 
								भरीं हैं अलग अलग अनुभूतियाँ 
								पैदा करने को शब्दों के रंग 
								यह वैसे ही होते हैं कमोबेश 
								जैसे होते हैं मौसम 
								देखो न कभी आते हैं तो 
								पेड़ लदे होते हैं पत्तों फूलों से और 
								कभी हमारी छायाओं की तरह 
								गुजरते हैं बिना पत्तों के ठूँठ से 
								कभी बर्फ से ढँके होते हैं 
								कभी गर्म हवा से जल जाते हैं पर 
								क्रम टूटने नहीं देते दुःख सुख का 
								तुम दीप, बहुत कुछ सिखाते हो 
								कभी रोशनी के गुलदस्ते बाँटते हो 
								कभी सपनों के फूल 
								जगमगा देते हो मन की आँखों में और 
								बता देते हो कि एक छोटा दिया भी 
								गहरे अन्धकार में सूर्य की तरह होता है 
								अँधेरा पीता है और जगमगाता है 
								हम सभी को रोशनी देने को  
								 
								ओ दीप नमन तुम्हें  
								तुम सच रात के सूरज हो 
								तुम यों हीं जलते रहना हमेशा 
								हमारे पथ प्रदर्शक बनकर 
								हमे रोशनी देने को! 
								 
								- डॉ सरस्वती माथुर  
								१ नवंबर २०१५  |