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								अँधियारे को लूटने, आए दीप हजार  
								नभ से लेके भूमि तक, खुशियों का बाजार  
								खुशियों का बाजार, कालिमा हाथ जोड़ती  
								सब मन भरा उजास, देख कर राह मोड़ती  
								हर्षित हों परिवार, रहें घर में उजियारे  
								रहो प्रीत को जोड़, मिटें जग के अँधियारे।  
								 
								गौरव दीपक को मिला, पसरा तली विराग  
								रहे तिमिर में खुद मगर, आभा से अनुराग  
								आभा से अनुराग, रोशनी फैली प्यारी  
								महके पूजा थाल, दिवाली आई न्यारी  
								धन कुबेर को देख, दुखों का भागा कौरव  
								ज्योतिप्रभा लहराय, दीप को मिलता गौरव  
								 
								नीरवता को क्षीण कर, दीपक मन मुसकाय  
								घोर तिमिर में साँस ले, देता प्रभा लुटाय  
								देता प्रभा लुटाय, दूधिया रंगत भरता  
								मन से बड़ा उदार, रात को रोशन करता  
								पी लेता है आग, सीख देता मानवता  
								खुशियाँ रहतीं साथ, दीप भाती नीरवता  
								 
								- कल्पना मिश्रा 
								वाजपेयी  
								१ नवंबर २०१५  |