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								अँधेरा मिटाना है बेहद ज़रूरी  
								दीये को जलाना है बेहद ज़रूरी  
								 
								उदासी के मौसम जो छाने लगे हों  
								तो खुशियाँ मनाना है बेहद ज़रूरी  
								 
								सितारों चरागों औ सूरज से कह दो 
								मेरे घर में आना है बेहद ज़रूरी  
								 
								मिठाई खिलायेंगे इक दूसरे को  
								गले भी लगाना है बेहद ज़रूरी  
								 
								पटाखे बजाओ जो बच्चों सभी मिल  
								बड़ों को बुलाना है बेहद ज़रूरी  
								 
								- संजू शब्दिता  
								१ नवंबर २०१५  |