| 
                                
                          
  
                                             
											 
											 
											   | 
                                                  
                                 
								द्वार पर दस्तक हुई, आई दिवाली।  
								ज्योति पर्वों की जली, आई दिवाली।  
								 
								भू-भुवन में रंग बिखरे, रोशनी के  
								रात अमा पूनम हुई, आई दिवाली।  
								 
								नव उमंगों के पहनकर पंख नूतन  
								डाल पर चहकी चिड़ी, आई दिवाली।  
								 
								देख झिलमिल दूर तक हर नयन-जल में  
								फिर कमलिनी खिल उठी, आई दिवाली। 
								 
								वस्त्र नूतन, ओढ़ बचपन, है मगन मन  
								ले पटाखों की लड़ी, आई दिवाली।  
								 
								प्रेम-पुरवा, जब चली पायल पहनकर 
								बाग में चटकी कली, आई दिवाली।  
								 
								सुन सखी री! गाओ स्वागत-गान मंगल  
								ले दिया लक्ष्मी खड़ी, आई दिवाली।  
								 
								लोक सारे में दुआ, देखो अलौकिक  
								देवताओं की घुली, आई दिवाली।  
								 
								जो बसे परदेस उनको‘कल्पना’फिर  
								लेके अपनों की गली, आई दिवाली।  
								 
								- कल्पना रामानी 
								१ नवंबर २०१५  |