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                                 दीप 
								खुशियों के जलाकर, टिमटिमाती है दिवाली 
								तम घना मन से मिटाकर, जगमगाती है दिवाली 
								 
								फर्श रंगोली सजी है, द्वार बंदनबार झूलें 
								भीत पर लड़ियाँ चमकतीं, झिलमिलाती है दिवाली 
								 
								मुल्क से अपने सभी घर, लौट कर आने लगे है  
								फासले होने लगे कम, दिल मिलाती है दिवाली 
								 
								मग्न है सब खेलने में ताश, बूढ़े और बच्चे 
								मिल ठहाकों के पटाखे, खिलखिलाती है दिवाली 
								 
								झोपडी में एक दीपक रोज जलता हौसलों का 
								पेट भर भोजन मिला जो, मुस्कुराती है दिवाली 
								 
								एक साया ढूँढता है, अधजले से कागजों में 
								काश मिल जाये फटाका, मन लुभाती है दिवाली 
								 
								फिर अमावस रात काली, खो गयी है रौशनी में 
								सत्य का जगमग उजेरा, गीत गाती है दिवाली 
								 
								- शशि पुरवार 
								२० अक्तूबर २०१४  |