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दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

जल दीपक निर्वात

तम सागर मत ऐंठ तू
बनकर दिशा महीप
कुंभज का ही
अनुज है
यह माटी का दीप

उधड़ी चमड़ी वक्त की
कड़ी पड़ी है मार
धधकेगी पर
लपट बन
गर्म खून की धार

अनिहारे को काटते
आधी जिनगी पार
कुंद नहीं
फिर भी हुई
इस हँसिये क धार

अँधियारे की पीठ पर
कर कस कर आघात
मावस की
इस रात में
जल दीपक निर्वात

--राजेन्द्र गौतम

१ नवंबर २०१०

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