अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

दीवाली में दीप जले

दीवाली में दीप जले
सभी यार मिल रहे गले
एक नया अंबर हो जैसे
तारों के अंबर के तले

आज अयोध्या बजी बधाई
गाँव नगर में खुशियाँ लाई
झूम रहे हैं बच्चे बूढे
नाचें गावें लोग लुगाई

सजधज कर बच्चे तैयार
मम्मी पापा चलो बाजार
खूब पटाखे हमें दिलाओ
दीवाली का है त्योहार

गाँव गली में हुई सफाई
बाजारों में रौनक छाई
कहीं जलेबी तलती देखो
कहीं सजी है रसमलाई

सभी पड़ौसी रिश्तेदार
बाँट रहे आपस में प्यार
इक दूजे के घर तक जाएँ
बना रहे सबका व्यवहार

साल बिताकर आने वाली
ढेरों खुशियाँ लाने वाली
सारे जग के तम को हर ले
ऐसा है त्योहार दिवाली

-- प्रवेश कुमार सिंह बिष्ट
१ नवंबर २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter