सखि
! दीप धरो !
काली-काली
अब रात न हो,
घनघोर तिमिर बरसात न हो,
बुझते दीपों में हौले-हौले,
सखि ! स्नेह भरो !
सखि ! दीप धरो !
दमके
प्रिय-आनन हास लिए,
आगत नवयुग की आस लिए,
अरुणिम अधरों से हौले-हौले,
सखि ! बात करो !
सखि ! दीप धरो !
बीते बिरहा
के सजल बरस
गूँजे मंगल नव गीत सरस
घर आये प्रियतम, हौले-हौले
सखि ! हीय हरो !
सखि ! दीप धरो !
--महेन्द्र
भटनागर
१ नवंबर २०१०