अपने कुटीर में

 
  पंचवटी अपने कुटीर में,
सपना देख रहे थे राम
घर आंगन उपवन वन मन में,
अपना देख रहे थे राम

महल दुमहले, सुख दुःख सब ही
खेल खेल से थे हैरान
नए नए षड्यंत्र बीच में
छलना देख रहे थे राम

जहाँ मंथरा सी प्रवृतियाँ
कैसे दशरथ वहाँ जिएँ
कौशल्या सी मात अयोध्या
पलना देख रहे थे राम।

- कमलेश कुमार दीवान
१ अप्रैल २०२४

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