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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 


बाबा कहते थे 

अँधियारे में दीप सम, सर्दी में प्रिय धूप
बाबा को मैं मानता, मैं प्यासा वे कूप

जिनकी शीतल छाँव में, हम करते आराम
ईश्वर तुल्य उस पितृ को, बारम्बार प्रणाम

अपनापन गोठिल जहाँ, वहाँ परस्पर द्वंद
बाबा कहते थे वहाँ, बढ़ते दुःख के फंद

सत्कर्मों से ही सदा, होता जग में नाम
बाबा की यह सीख थी, लो विवेक से काम

बाबा कहते थे सदा, सुन लो मेरे लाल
जीवन में होना सफल, बहके कदम सँभाल

भ्रष्ट आचरण त्यागकर, करते मधुरिम बात
बाबा वर्षा नेह की, प्यार भरी सौगात

- राम शिरोमणि पाठक
१५ सिंतंबर २०१४

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