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वसंत का पहला दिन

 

  वसन्त का पहला दिन और सपने की शुरुआत
जाती हुई ठंड
और आती हुई गर्मी के बीच
यह वसन्त का पहला दिन है
जिसमें मैं एक सपने को
आकार देना चाहता हूँ
शुरुआत के साथ जुड़ी निराला की याद
हौसला देती है
मुश्किल वक्त में सपना देखने का
चलती दुनिया से हटकर चलने की
हालाँकि कोई फर्क नहीं पड़ता अगर
यह नवंबर की भुरभुरी ठंड होती
या जून का चिलचिलाता सौन्दर्य
सपने देखने और उन्हें आकार देने की जगह न के बराबर है
हमारी दुनिया में
फिर भी यह वसंत का दिन है
खुशनुमा और जद्दोजहद के बीच भी खुशी देने वाला
सो देखा जा सकता है सपना
जिसमें यादें अपना मनचाहा आकार घेरती हैं
यादों की इस गैलरी में
पीला रंग
सरसों और ग्रामीण औरतों की साडियों से निकलकर
फैल गया है आँखों में
जहाँ सपना आकार ले रहा है
याद के दूसरे सिरे पर
इस मनचाहे मौसम में
परीक्षाओं और भविष्य की बुनावट में उलझा एक किशोर
अपनी इच्छाओं को खूँटी पर टाँगकर
कर चुका है खुद को अनुशासन के हवाले
जौ-गेहूँ की बालियों और बौराए आमों के तने
से लेकर रंग-बिरंगी तितलियों तक में उसकी दिलचस्पी खत्म तो नहीं
लेकिन स्थगित हो गई है
उसने अपने सपने को भी स्थगित कर दिया है
आँख के पीलेपन को छुपाता हुआ
देखता हूँ वसन्त के आसमान में उड़ती पतंग
जैसे आई चीन से
कोरिया-जापान के रास्ते
मैं चाहता हूँ सपना भी आ जाए उड़ता हुआ
जिसे हकीकत के सिर को ढूँढ रही पतंगों से ज्यादा रंगीन होना है

--सचिन श्रीवास्तव

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