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मनुहारों के दिन

 

  लौट आये मनुहारों के दिन
नेह की गगरी झरी-झरी
ऋतुराज छिटकाए सतरंग
धरा वासंती हरी- हरी

उड़-उड़ जाए पीत ओढ़नी
पुरवाई के पँख लगे
सरसों के पग बँधे पैंजनी
गेहूँ सारी रात जगे
बौराई बंजारन कोयल
कुहुके गाए घड़ी-घड़ी

खिला-खिला धरती का आनन
देहरी अँगना धूप धुले
महुआ- टेसू गंध बिखेरें
लहर-लहर अनुराग घुले
ओस कणों में हँसती किरणें
हीरक कणियाँ लड़ी-लड़ी

नयन ताल में रूप निहारे
पाहुन से जब बात करे
चन्दन घुलमिल अंग निखारे
अंजन रेखा आँख भरे
जूही चम्पा वेणी बाँधे
मोती माणक जड़ी-जड़ी

लौट आए उपहारों के दिन
साध पिटारी भरी-भरी

--शशि पाधा

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