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ग्राम्य पाठशाला

 

बस मस्ती थी शैतानी थी
जीवन की नन्ही घडियों में
बचपन की वही कहानी थी
जब खेले आँगन, गलियों में
जीवन में भरने उजियाला
भेजा तब ग्राम्य पाठशाला

जीर्ण शीर्ण कमरों की शाला
जिसके सम्मुख रहा शिवाला
खेतों, बागों के मध्य निकल
पहुँचे नित-नित बालक बाला
गुरु चरणों में स्थान मिला
पढ़ने की तब धधकी ज्वाला

लिया गुरुवर से स्नेहाशीष
वे केवट थे, मैं इक कश्ती
कुछ रंग भर सकें जीवन में
ले ली दवात, बस्ता, तख्ती
छुट्टी तक कपड़े हो जाते
अद्भुत सी एक चित्रशाला

गा गा कर तब गिनती सीखी
सब पाठ बने कविता वीथी
कभी वृक्ष तले कक्षा चलती
गुरुवर की डाँट कभी तीखी
बाहर पंचम सुर में गाकर
की सब कंठस्थ वर्णमाला

गुरु की महिमा वैभवशाली
नव पौधों का सुंदर माली
अभिसिंचित करता ज्ञान नीर
महका देता हर-इक डाली
गीली कच्ची मिट्टी को गढ़
इंसानी मूरत में ढाला

- ओम प्रकाश नौटियाल
१ सितंबर २०२४

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