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         अंतस को दी गहराई

 

टाट चटाई की शाला ने
अंतस को दी गहराई

बचपन ने नित सीख ककहरा
स्वप्न भरे थे बस्ते में
मार्गदर्शिका छड़ी उठी जब
कौन छूटता सस्ते में
गुणा भाग सीखे जीवन के
नैतिक गुण पर ले आई

वर्ण-वर्ण को जोड़ा था तब
शब्द कमल को कलम पढ़े
पनघट पर नटखट बचपन के
झटपट कर नित कदम बढ़े
दिशा मिली फिर उसी कलम को
लिए पाठ की सच्चाई

कोरा मानस पटल रहा जो
गुरु ने उसमें रंग भरे
स्वर्ण सदा तप कर ही चमके
ऐसे जीवन ढँग भरे
जग की हो उत्तीर्ण परीक्षा
शिक्षक ने ही सिखलाई

बने कुम्हार मातु पिता गुरु
साँचे में फिर ढाल दिए
कच्ची माटी सम बचपन को
संस्कार की थाल दिए
गुरु चरणों में वंदन, जिनसे
जीवन लतिका लहराई

- अनिता सुधीर आख्या
१ सितंबर २०२४

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