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पाठशाला
 

उन्मुक्त गगन में सैर करते पक्षियों के समूह से
खुद से कई गुना बड़ी किसी चीज़ को मिलकर ले जाती चींटियों से
रंग-बिरंगे गुलों वाले दूर-दूर तक खुशबू बिखेरते चमन से
लकड़हारे के कंधों पर रखे लकड़ियों के मज़बूत गट्ठे से
सीखना है एकता का पाठ हमें
राष्ट्र उत्थान और मनुष्यता के उत्थान के लिए
यह पाठ इन्हीं से पढ़ना पड़ेगा हमें

क्योंकि हमारी पाठशाला में
नहीं मिलता पढ़ने को एकता का पाठ
शायद निकाल दिया गया है बहुत पहले हमारे पाठ्यक्रम से
आज कल तो हमारी पाठशाला में हम किये जा रहे हैं तैयार
बिखराव की प्रतियोगिता के लिए
स्वयं रो कर धरती को हँसा देने वाले सावन से
स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी देने वाले दीप से सीखना है
त्याग की परिभाषा हमें
राष्ट्र उत्थान और मनुष्यता के उत्थान के लिए
यह इन्हीं से सीखने को मिलेगी हमें

क्योंकि हमारी पाठशाला में
नहीं मिल पा रही है सीखने को त्याग की परिभाषा
शायद समझी जा रही है सबसे गौण परीक्षा की दृष्टि से
आज कल तो हमारी पाठशाला में सिखाई जा रही है कला
सामाजिक और राष्ट्रीय हित जलाकर
अपने घर में रोशनी करने की
नर्म-मुलायम घास से,
सुन्दर सुकोमल फूल से सीखनी है कोमलता हमें
राष्ट्र उत्थान और मनुष्यता के उत्थान के लिए
यह इन्हीं से सीखनी पड़ेगी हमें

क्योंकि हमारे पाठ्यक्रम में शामिल है
एक बहुत छोटा सा पाठ कोमलता पर
और चलती है एक पूरी किताब निष्ठुरता सिखाने वाली
मुझ सहित कई चाहते हैं
अपनी इस दूषित पाठशाला से बाहर निकल कर
सीखना वह सब जो ज़रूरी है
राष्ट्र उत्थान और मनुष्यता के उत्थान के लिए
और फिर आने वाली पीढ़ी के लिए निर्मित करना

एक ऐसी पाठशाला
जो पर्याय हो मानवता के पूर्ण उत्कर्ष की
लेकिन आसान नहीं है
अपनी इस पाठशाला से बाहर निकल भागना
मुख्य द्वार पर बैठा रहता है एक विशालकाय निर्दयी चौकीदार
जो अधिकृत है पाठशाला परिसर छोड़ने वाले
किसी भी छात्र के हाथ पैर तोड़ने के लिए
टी.सी. देने का कोई प्रावधान नहीं है हमारी पाठशाला में
तमाम ख़तरे उठा कर यदि संभव भी हुआ पाठशाला छोड़ना
तो भी क्या ‘चरित्र अच्छा नहीं’ की तख़्ती
जड़वा देगी पाठशाला हमारे व्यक्तित्वों पर
गिर जाना होगा समाज की दृष्टि में बहुत नीचे

तो फिर
क्या नहीं चल पायेंगी कभी सम्पूर्ण मनुष्यता की कक्षाएँ
क्या नहीं हो पायेगा लागू कभी राष्ट्र उत्थान का सही पाठ्यक्रम
क्या नयी स्वस्थ पाठशाला का स्वप्न हमेशा स्वप्न ही रहेगा
नहीं ...नहीं...नहीं देर-सवेर ही सही
अवश्य निकलेगा कोई रास्ता

- वीरेन्द्र खरे अकेला
१ सितंबर २०२४

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