अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

            गुरुजी की छड़ी

 

कान पकड़ कर
पिता जी छोड़ आये पाठशाला
अक्षर ज्ञान बारहखड़ी
सीखे संस्कृत के श्लोक
और सीखे गणित के उलझे सवाल

गुरूजी की
छड़ी का डर और पिता जी की फटकार
मन खेलने का हैं परन्तु पढ़ना ही पढ़ेगा
नहीं तो गुरु जी की छड़ी का
सामना करना ही पड़ेगा

बहुत कुछ सीखा
और आगे बढ़ते गए
एक दिन लाट साहब बन गए

गुरूजी और पिताजी नहीं रहे
पर उनकी छड़ी की याद जब भी आती है
शरीर में सिहरन दौड़ जाती हैं
उस छड़ी की मार तो सहन हो जाती थी
पर जिंदगी को बनाने वाली बही
गुरु जी की छड़ी होती थी

बचपन तो बचपन होता हैं
पढ़ना लिखना कम, मटरगश्ती ज्यादा होती हैं
पाठशाला नहीं जाने के बहाने होते हैं
बुखार आ रहा हैं, पेट दुख रहा हैं
रोज के बहाने

परन्तु पिता जी भी कहाँ मानने को तैयार
कान मरोड़ते, बस्ता हाथ में लिए
पाठशाला चल देते हैं
गुरूजी इस छोरे की अच्छी खबर लेना
पाठशाला न आने के सौ वहाने करता हैं
पढ़ाई नहीं करे तो छड़ी से
अच्छी सुटाई करना

पिताजी की सख़्ती, गुरूजी की छड़ी
पाठशाला के दोस्त, पढ़ाई में रूचि कर देते हैं
आज बचपन के दिन बहुत याद आते हैं
जब भी गाँव जाता हूँ
पाठशाला को शीश नवाता हूँ
आज भी गुरु जी की वह छड़ी याद आती है

शहर में अच्छी नौकरी कार बंगला
पाठशाला में गुरु जी की छड़ी के कारण ही हैं
नहीं तो आवारा भटकता बादल की तरह
चलाता गाँव में छोटी-सी परचून की दुकान
या फिर किसी की नौकरी कर पेट भर रहा होता

आज वही सबक दोहराता हूँ
बच्चों को पिता जी, पाठशाला और
गुरु जी की छड़ी की
याद दिलाता हूँ

- संजय सुजय बासल
१ सितंबर २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter