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गुरु वन्दना
 

बड़े भाग्य जिनको मिले, गुरु की कृपा अमोल।
सारे जग का स्वर्ण भी, जिसे न पाये तोल ।।

सुना है अपने शिष्य को, गुरु भी लेते खोज।
बिछा पलक के पाँवड़े, आश करूँ मैं रोज ।।

वह शुभ दिन कब आयेगा, कब जागेंगे भाग।
सफल भाग्य होगा सजल, नैनों का अनुराग ।।

बिन गुरु ज्ञान न प्राप्त हो, जाने सब संसार ।
राह दिखाते शिष्य को, गुरु की कृपा अपार।।

जला ज्ञान का दीप जो, हरते हैं अज्ञान।
बढ़ता दिन-दिन सूर्य सा, उनका ही सम्मान।।

चेतन को चेतन करे, जड़ पर कर आघात।
जो ज्योतित तन-मन करे, दिन हो या हो रात।।

देवोपम वो गुरु सदा, पाते हैं सम्मान।
जो अबोध शिशु को बना, देते गुण की खान।।

माता पहली गुरु है, जीवन का आधार।
इक अबोध शिशु के लिए, माँ ही है संसार।।

- मधु प्रधान
१ सितंबर २०२४

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