अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     .सूरज रहता दंग

 
आसमान को छूने
निकली आज पतंग

लड़ती है मौसम की खींचातानी से
ऊपर उठती कहाँ कभी आसानी से
जीवटता को देख के
सूरज रहता दंग

हवा-धूप से मिलती है, बतियाती है
हर उड़ते पंछी का साथ निभाती है
जीती आयी है
जीवन में भाव-तरंग

नहीं धरा का रिश्ता कभी भुलाती है
आखिर लौट पुनः घर अपने आती है
रोज बाँटती खुशियाँ
सबको रंग-बिरंग

- योगेन्द्र प्रताप मौर्य
१ जनवरी २०२३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter