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     . उड़ती हूँ मैं

 
सर सर सर सर उड़ती हूँ मैं
फर फर फर फर करती हूँ मैं
डोर सहारे इठलाती सी
नभ में विचरण करती हूँ मैं

लाल हरा बैंगनी बसंती 
सब रंगों को रखती हूँ मैं
कुछ छोटे कुछ बड़े रूप के
विविध वेष को धरती हूँ मैं

नई उमंगे नई तरंगे
जनजीवन में भरती हूँ मैं
जब आए मेरा मौसम तो
रानी बनकर रहती हूँ मैं

मिलती सबसे प्रेम भाव से 
हँसी ठिठोली करती हूँ मैं
इसको काटा उसको काटा
नटखट बनकर रहती हूँ मैं

ऐक्य साम्य का पाठ पढ़ाती
सदा निडर बन चलती हूँ मै
सपनों को पूरा करने में 
कई बार आ गिरती हूँ मैं

जब कोई आता मुझे लूटने
शोर शांत बन सुनती हूँ मैं
फिर उठकर अँगड़ाई लेकर
छक्के छुड़वा देती हूँ मैं

- डा. उषा गोस्वामी
१ जनवरी २०२३

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