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     .  .डोर किसके हाथ

 
डोर किसके हाथ में हैं
इस पतंगी
ज़िंदगी की?

रंग अनगिन है यहाँ पर
कोई भी पक्का नहीं है
दाँव देते है सभी जब
भी इन्हें धोया कहीं हैं
शुभ्र वर्णी चेतनाएँ हैं
सुभग
आवारगी की

पार नभ के जा रही है
छोड़ कर ज्यों वसुंधरा
किन्नरों गंधर्व के उस
देश में है क्या धरा ?
रूप का आख्यान गर्वित
और बातें
सादगी की

रंग की यह डुगडुगी है
लास्य की भी बाँसुरी
सात रंगों में मचलती
धुन ये मधुरिम रस पगी
चल रही दुनिया सदा
से बस इसी
जादूगरी की

- रंजना गुप्ता
१ जनवरी २०२३

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