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       पतंगों की उड़ान

 
लो पतंगों ने
हवा की गति पकड़ ली

तीलियों को गढ़ा रंगों को सजाया
कागज़ों में पंख हैं छूकर बताया
हवा के घोड़ों पे जिनको था बिठाया
एक हल्की टोह दे नभ में उड़ाया

लो उन्होंने
दिशा ही अपनी बदल ली

है सुखद कितना कि जड़ जंघम हुए हैं
तोड़ कारा उड़ रहे हरियल सुए है
नये अंकुर ध्येय नव सपने नये हैं
सफलताओं से भी नव करतब जुड़े हैं

लो उन्होंने
करतबों की राह गह ली

इन उड़ानों में सुखद संसार छाया
छोर नभ का पर भला किसने है पाया
साथ में भ्रम का चला चतुरंग साया
औ पतन का भय सदा मन में समाया

तो उन्होंने
अनुभवों की दल चख ली

- पूर्णिमा वर्मन
१ जनवरी २०२३

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