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       नटखट अलबेली

 
मैं नटखट, अलबेली
अपने जैसी एक अकेली
डोर है मेरी जीवन साथी
और हवा सहेली

खुले गगन में उड़ती हूँ मैं, डोल-डोल, लहराती हूँ
मस्त पवन में पंख फैलाये पंछी सी इठलाती हूँ
डोर कभी जो करे इशारा खुद नीचे आ जाती हूँ
उलझ गई तो सुलझ न पाऊँ
ऐसी कठिन पहेली

देश विदेश, कई रंगों में, कई रूपों में मिलती हूँ
तीज त्योहारों की रानी मैं, बैसाखी में खिलती हूँ
राजा हो या रंक सभी के हाथों में जा मचलती हूँ
इक पगली सी, इक कमली सी
जैसे नार नवेली

रंगबिरंगी काया मेरी, मैं छरहरी कामिनी- सी
मेरी अदाएँ है नखरीली, हूँ मैं गर्वित भामिनि-सी
बीच बादलों के मैं जगमग-जगमग चमकूँ दामिनी-सी
बिजली को मैं जमीं पे लाई,
बेंजामिन की चेली

- डॉ. नितीन उपाध्ये
१ जनवरी २०२३

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