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     हर उत्सव में आ सजे

 
हर उत्सव में आ सजे, रंगी विविध पतंग
नवल रूप से मोहती, मन में भरे उमंग

झूमे नाचे गगन में, लहराती मदमस्त
पर दूजों से संभल के, रहती है अभ्यस्त

संस्कारों की डोर से, बंधी रहे जो नित्य
पर हाथों से संतुलित, करती अनुपम नृत्य

दौड़ भाग के उलझती, छूती नभ के छोर
लहराती छवि देख के, गूँजे चहुँ दिशि शोर

साथ कभी टोली बने, चलें सजाये हाथ
खुश हो वह उड़ती फिरे, देखें जब नभ माथ

नभ में संग विचरण करें, पाखी चारों ओर
घायल माँझे से हुए, जब-जब उलझे डोर

नारी सा जीवन जिए, सुंदर रूप पतंग
औरों के हित घूमती, देती खुशी उमंग

- ज्योतिर्मयी पंत
१ जनवरी २०२३

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