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        उड़ी पतंगें

 
खट्टे मीठे अरमानों को ढोती उड़ी पतंगें
ख्वाहिश के ताज़ा लम्हों पर चढ़ती उड़ी पतंगें

उड़ते उड़ते नील-गगन के इक बादल से लिपटीं
रुख बदला मौसम का तो फिर पलटी उड़ी पतंगें

एक वक्त था त्योहारों में रंग बिरंगी होती थीं
दौरे-सियासत ऐसा आया चुप सी उड़ी पतंगें

साथ हवा के खुद को छोड़ा अब उसकी है मर्जी
बाँट के हर सपने को देखो अपनी उड़ी पतंगें

तेज बहुत है माँझा फिर दीवान कहीं ना उलझे
उड़ने दो जितनी भी उड़ कर ऊँची उड़ी पतंगें

- कमलेश कुमार दीवान
१ जनवरी २०२३

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