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उम्मीदें कुछ खास
 
नये वर्ष से हैं हम सबको
उम्मीदें कुछ खास

आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हुई डाली
मौसम घर का बदल गया, फिर
विवश हुआ माली
ठिठुर रहे हैं सर्द हवा में
भीगे से अहसास

दरक गये दरवाजे घर के
आँधी थी आयी
तिनका तिनका उजड़ गया फिर
बेसुध है माई
जतन कर रहीं बूढी साँसे
आये कोई पास

चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया
समझ नहीं पाये
दुनिया उसकी बदल गयी है
उसे कौन बतलाए
ऊँची ऊँची अटारियों पे
सूनेपन का वास

नए वर्ष का देख आगवन
पंछी गाते गीत
बागों की कलियाँ भी झूमें
भँवरे का संगीत
नयी ताजगी, नयी उमंगें
मन में है उल्लास

- शशि पुरवार
२९ दिसंबर २०१४

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