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नव
वर्ष अभिनंदन |
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नए साल की
तरह |
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गुज़रो न बस क़रीब से ख़याल की तरह
आ जाओ ज़िंदगी में नए साल की तरह
कब तक तने रहोगे यूँ ही पेड़ की तरह
झुक कर गले मिलो कभी तो डाल की तरह
आँसू छलक पड़ें न फिर किसी की बात पर
लग जाओ मेरी आँख से रूमाल की तरह
ग़म ने निभाया जैसे आप भी निभाइए
मत साथ छोड़ जाओ अच्छे हाल की तरह
बैठो भी अब ज़हन में सीधी बात की तरह
उठते हो बार-बार क्यों सवाल की तरह
अचरज करूँ 'किरण' मैं जिसको देख उम्र-भर
हो जाओ ज़िंदगी में उस कमाल की तरह
कविता किरण
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षोडष शृंगार
नील गगन पर बिखरी धूप,
किरणें बाँधें वन्दनवार
कुसुमित, शोभित आँगन बगिया
चन्दन सुरभित चले बयार
नवल वर्ष के अभिनन्दन में
नीड़-नीड़ गुँजित गुँजार
दूर देश से पाहुन आया
चकित-मुदित-सी आन मिली
अक्षत-चन्दन भाल सँवारे
देहरी पे बन ज्योत जली
अंजली में ले पुष्पित लड़ियाँ
स्वागत में आ ठाढ़ी द्वार।
भोर किरण से लाया चुनरी
ओस कणों से मुक्तक हार
जवा कुसुम के कर्ण फूल औ
बदली से कजरे की धार
खुली पिटारी, लाँघे देहरी
अंग-अंग छा गई बहार।
धरती का षोडष शृंगार
नवल वर्ष लाया उपहार!
शशि पाधा
२८ दिसंबर २००९
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