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नव वर्ष अभिनंदन

नए बरस की पहली सुबह

नए बरस की पहली सुबह
पुराने बरसों का पानी
खिला है मुझ पर फूल बन

जिन पर छाई है पुराने बरस की यादें
तितलियाँ बन
छूती मेरे फूलों को
मेरे हरे को

और खोजती मुझमें वो पौधा
जिस पर हुई थी वो मोहित
ढूँढती अपने निशान
जो समय के साथ
तने की छाल के भीतर खो गए है कही

जड़ें सब देख रही है

जमा रही है अपने पाँव
और भीतर, और भीतर
अपनी शिराओं को
मिला रही है नदी की शिराओं से
पुराने पानी को मिला रही अपने में
जड़ें चाहती है
समय रहे...हमेशा...
हरा

--राकेश नारायण

नया साल...

उन बच्चों के नाम
जिनके पास
न ही है रोटी
न ही है,
कोई खेल खिलौने
न ही कोई बुलाए
उन्हें प्यार से
न कोई सुनाये कहानी
पर बसे हैं,
उनकी आँखों में कई सपने
माना कि अभी है
अभावों का बिछौना
और सिर्फ़ बातो का ओढ़ना
आसमन की छत है
और घर है
धरती का एक कोना
पर...
उनके नाम से बनेगी
अभी काग़ज़ पर
कुछ योजनायें
और साल के अंत में
वही कहेंगी
जल्द ही पूरी होंगी
यह आशाएँ...
इसलिए,
उम्मीद की एक किरण पर।
नया साल उन बच्चों के नाम...

रंजू भाटिया
२८ दिसंबर २००९

 

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