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नव वर्ष अभिनंदन

खड़ा है नव वर्ष

 

उम्र की शोंखियों को
निगाहों के सागर में समेटे,
सदियों की तड़प को
अपनी बाहों में जकड़ के,
खड़ा है वर्ष नया फिर
रूबरू आँखें अपनी बिछाए,
उमड़ती उम्मीदें नई
नज़रों में अपनी भर के।

चलो इक बार फिर
जीवन के महकते प्याले को
पल-पल होठों से लगा लें,
घूँट-घूँट पीकर इसे
वजूद अपना सजा लें।

चलो इक बार फिर
सितारों को भर के आँखों में,
उस खुले आसमान को
सीनों में अपने छुपा लें।

--मीना चोपड़ा

  

नई सुबह

चलो,
पूरी रात प्रतीक्षा के बाद
फिर एक नई सुबह होगी
होगी न,
नई सुबह?
जब आदमियत नंगी नहीं होगी
नहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
नहीं जलेंगीं नई चिताएँ
आदिम सोच, आदिम विचारों से
मिलेगी निजात
होगी न,
नई सुबह?
सब कुछ भूल कर
हम खड़े हैं
हथेलियों में सजाये
फूलों का बगीचा,
पूरी रात जाग कर
फिर एक नई सुबह के लिए
होगी न
नई सुबह?

कुँअर रवीन्द्र
२८ दिसंबर २००९

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