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नव वर्ष अभिनंदन

अलविदा


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          अलविदा ओ पतझड़!
बाँध लिया है अपना डेरा-डफेरा
हाँक दिया है अपना रेवड़
हमने पथरीली फाटों पर
यह तुम्हारी आखिरी ठण्डी रात है
इसे जल्दी से बीत जाने दे
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की दुनिया देखेंगे!

विदा, ओ खामोश बूढ़े सराय!
तेरी केतलियाँ भरी हुई हैं लबालब हमारे गीतों से
हमारी जेबों में भरी हुई है ठसाठस तेरी कविताएँ
मिलकर समेट लें
भोर होने से पहले
अँधेरी रातों की तमाम यादें
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की हलचल सुनेंगे!

विदा, ओ गबरू जवान कारिन्दो!
हमारी पिट्ठुओं में
ठूँस दी है तुमने
अपनी संवेदनाओं के गीले रूमाल
सुलगा दिया है तुमने
हमारी छातियों में
अपनी अँगीठियों का दहकता जुनून
उमड़ने लगा है एक लाल बादल
आकाश के उस कोने में
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की हवाएँ सूँघेंगे!

सोई रहो बर्फ़ में
ओ, कमज़ोर नदियों
बीते मौसम घूँट-घूँट पिया है
तुम्हें बदले में कुछ भी नहीं दिया है
तैरती है हमारी देहों में तुम्हारी ही नमी
तुम्हारी ही लहरें मचलती हैं
हमारे पाँवों में
सूरज उतर आया है आधी ढलान तक
आज हम पहाड़ लाँघेंगे उस पार की धूप तापेंगे!

विदा, ओ अच्छी ब्यूँस की टहनियों
लहलहाते स्वप्न हैं हमारी आँखों में
तुम्हारी हरियाली के
मज़बूत लाठियाँ हैं हमारे हाथों में
तुम्हारे भरोसे की
तुम अपनी झरती पत्तियों के आँचल में
सहेज लेना चुपके से
थोड़ी-सी मिट्टी और कुछ नायाब बीज

अगले बसंत में हम फिर लौटेंगे!

--अजेय
२८ दिसंबर २००९

 

नव वर्ष की प्रथम भोर

नव वर्ष कि प्रथम भोर
करती है अंतरमन विभोर
हो जीवन में उत्कर्ष

स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष।

प्रथम रश्मियाँ अपने संग
लाएँ आशा और उमंग
भरें जीवन में हर हर्ष

स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष।

फैले मानवता का धर्म
शिकार छू लें सब सत्कर्म
यही हो जीवन का निष्कर्ष

स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष।

अखिलेश सोनी

नया वर्ष

संगीत की बहती नदी हो
गेहूँ की बाली दूध से भरी हो
अमरूद की टहनी फूलों से लदी हो
खेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्ष

सुबह का उगता सूरज हो
हर्षोल्लास में चहकता पाखी
नन्हे बच्चों की पाठशाला हो
निराला-नागार्जुन की कविता हो
नया वर्ष

चकनाचूर होता हिमखंड हो
धरती पर जीवन अनंत हो
रक्तस्नात भीषण दिनों के बाद
हर कोंपल, हर कली पर छाया वसंत हो

-अनिल जनविजय

मंगलमय हो नववर्ष

पूरब से
उतरी नव किरणें
प्रदीप्त हुआ प्रभाकर नवीन
आज प्रभात के घाट पर
परिदृश्य हैं नवनीत
शरद ने शृंगार किया
धरा बनी दुल्हन
पुष्प कीरीट से शोभित क्यारी
हर्षित है चंपा की डाली
इंद्रधनुष के रंग भर
प्रकृति मनाए उत्कर्ष
भाव भरे जनकल्याण का
नवनिर्माण का
सृजन का और विकास का
कहें सभी सहर्ष
मंगलमय हो नववर्ष

हेमेंद्र जर्मा

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