| हमें बाँधता गूँथ कर कोई मीठा शोरसूरज नया सहेजती नई सदी की भोर।
 कैलेंडर को क्या पता तारीखों की भूलनई सदी की आँख में दहक रहे हैं फूल।
 नई सदी तक आ गई गई सदी की चीखहम थे गहरी नींद में बदल गई तारीख।
 धुँध अंधेरा त्रासदी धूल धुआँ अपमानकिस पर किस तरह नई सदी दे ध्यान।
 कुहरे का तंबू तना सूरज का रूमालदेह तोड़ती है सदी बीता पिछला साल।
 बादल की है ओढ़नी बादल का है शालनई सदी ने धूप में खोले अपने बाल।
 ग्रीटिंग पर शुभकामना होठों पर एक नामनई सदी में लग रही सूर्योदय-सी शाम।
 बढ़ी नदी तारीख की चली समय की नावनई सदी में सज रहे लय गति यति अनुभाव।
 नई सदी की देह पर गई सदी के घावअट्टाहास करने लगे घर-घर नए अभाव।
 बहुत औपचारिक हुए आपस के संबंधटूट न जाएँ देखिए नई सदी के छंद।।
 यश मालवीय  |