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नव
वर्ष अभिनंदन |
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लो फिर एक
साल जाने को है
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लो फिर अपनी अच्छी बुरी यादों के साथ
एक और साल आज जाने को है,
अपनी खट्टी-मीठी बातों के साथ
अलविदा कह एक नयी सुबह लाने को है,
हम सब के जीवन में अपना गहरा
प्रभाव छोड़ कर अपनी चाहत
आज हम से कह रहा है
यह साल चाहता है, कि हम इस बार
आने वाले नये साल की सुबह का स्वागत
एक नये अंदाज़ से करें,
यह साल चाहता है, हम नयी सुबह का स्वागत
मंदिरों में जाकर, दीप जला कर, डोल, शंख,
नगाडे बजा कर करें,
यह चाहता है, हम सभी मिलकर सुबह का प्रारंभ
भक्ति व मंगल गीतों को गा कर करें,
परम पिता परमात्मा की आरती उतार कर,
निःस्वार्थ भाव से सब के लिए मंगल की कामना कर करें,
यह चाहता है, हमारे देश में कोई भी जन उदास न हो
हर मन मुस्काए, खुशियां हर घर आंगन में अपना डेरा लगाएँ,
कुछ हो ऐसा के भारत के हर वासी के मन में,
फिर राष्ट्र–प्रेम का उदय हो,
और वो तन मन धन से देश और देशवासियों
की सेवा मे जुट जाए।
हमारे देश भक्तों का हर अधूरा सपना साकार हो,
और हमारे भारत को पुण्य विश्व गुरु पद मिल जाए।
लो फिर एक साल जाने को है।
अमन गर्ग
1 जनवरी 2007
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नमन
नये साल तुम्हें नमन।
आपसी विश्वास का आधार,
दो हमें असीम प्यार,
राग-द्वेष छोड़, त्याग झूठा अहंकार,
इंसानियत के गीत गाएँ जन-जन
नये साल तुम्हें नमन।
भाई चारे का चोला डाला,
न रहे आतंक का बोल बाला,
मिटा आपस का भेदभाव,
देश सेवा में लगाएँ तन मन
नये साल तुम्हें नमन।
कार्य में हो निष्ठा लगन,
कम न हो कभी उत्पादन,
अब ना सोएगा कोई भूखा,
इतना अन्न उगाएँगे, करते हैं प्रण
नये साल तुम्हें नमन।
डॉ. प्रदीप गुप्त
1 जनवरी 2007
नव वर्ष के हे सृजनहार
नव वर्ष के हे सृजनहार
कीजिए मेरी कल्पना को
इतना सजग कि
मेरी कल्पना की ऊँची उड़ान
खुले आकाश की ऊँचाई नाप सके
नव वर्ष के हे नवोदित नव प्रभाकर
कीजिए मेरे मन को
इतना उजागर कि
मेरे ईद गिर्द छाया अंधेरा मुझे
भयभीत न कर सके
नव वर्ष की
हे नव चेतना
मेरे अचेतन मन को
कर दो फिर से इतना सचेतन कि
निष्क्रिय शरीर रूपी
पिंजड़े मे जो बंद है
वह खुले मुक्त विश्व में
विचर सके
सत्यनारायण सिंह
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