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नव
वर्ष अभिनंदन
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नया
साल कुछ यूँ भी |
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हेमन्त के आगमन से सिहरती हवाओं में,
लाल - गुलाबी - सफेद पोस्त के फूलों की पंक्तियों पर,
बगुले सा उतर आता है
नए साल का पहला दिन।
इस बार इसे बाट लेना प्रकृति के संग
देर तक जागी रात के शोर के बाद
शायद तुम उपेक्षित कर जाओ
सुबह-सुबह बकरियाँ लेकर गुजरते
गडरिये के अलगोजे की टेर को।
मगर खुलते ही,
इस दिन की हल्की भूरी आंखें
निकल पड़ो जंगल की ओर
नए साल का पहला दिन मनाने का
इससे प्राकृतिक तरीका होगा कोई!
कामोन्मत्त शलभों की पेड़ों से व्यर्थ टकराहटें
झड़े पंख और मृत शलभों के ढेर देख उदास न होना
यह तो प्रकृति का एक सादा सा नियम है।
अकेले नहीं होगे तुम, साथ होगी
महुए के खिलते फूलों की मदिर गंध
पतझड़ के अनेक जलते रंग।
समानान्तर बहती खामोश प्रिया-सी
नहर के बहते पानी में पैर डाल महसूस करना
पानी का आतुर गुनगुना स्पर्श
पक्षी-युगलों के नानाविध उत्कंठ तप्त स्वर सुनना
देखना रेतीले कगारों का चुपचाप गिरना
आत्मविस्मृत हो प्रकृति में लीन हो जाना
अनुभूतियों को शब्दों से अनावृत कर
पहरों डूबने-उबरने देना, नहर के उन्मुक्त बहाव में
टिटहरी के आर्त स्वरों से अन्यमनस्क न होना
दर्द भी तो खुशी का ही एक टूटा टुकड़ा है।
बस यूं एक अच्छा दिन,
प्रकृति में कण-कण बिखेर आना।
-मनीषा
कुलश्रेष्ठ |
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नव वर्ष आया
है द्वार
मंगल दीप जलें अम्बर में
मंगलमय सारा संसार
आशाओं के गीत सुनाता
नव वर्ष आया है द्वार
स्वर्ण रश्मियाँ बाँध लड़ी
ऊषा प्राची द्वार खड़ी
केसर घोल रहा है सूरज
अभिनन्दन की नवल घड़ी
चन्दन मिश्रित चले बयार
नव वर्ष आया है द्वार
प्रेम के दीपक नेह की बाती
आँगन दीप जलाएँ साथी
बदली की बूँदों से घुल मिल
नेह सुमन लिख भेजें पाती
खुशियों के बाँटें उपहार
नव वर्ष आया है द्वार
नव निष्ठा नव संकल्पों के
संग रहेंगे नव अनुष्ठान
पर्वत जैसा अडिग भरोसा
धरती जैसा धीर महान
सुख सपने होंगे साकार
नव वर्ष आया है द्वार
-शशि पाधा
फिर आ गया नव वर्ष
आ गया नव वर्ष
पता भी न चला
हादसों के साये में
हर पल इन्तज़ार
मौत के साये का
इन्सान ही इन्सान के
खून का प्यासा हो गया
ऐसे में नव वर्ष
तुम्हारे आने का
औचित्य क्या है
हर साल आते हो
नया घाव साथ लाते हो
हम मुग़ालते में
बिताते हैं एक वर्ष
कि शायद अनहोनी न हो
कभी तो आओ
सिर्फ खुशियों के साथ
ताकि पता चल सके
कि नव वर्ष आया है
-मधुलता अरोरा |