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नव वर्ष अभिनंदन

नए साल की कर मनुहार

         

एक वर्ष ने और विदा ली
एक वर्ष आया फिर द्वार।
गए वर्ष को अंक लगाकर
नए वर्ष की कर मनुहार।

आता है कुछ लेकर प्रतिदिन
जाता है कुछ देकर बोध।
मैं बैठा चुपचाप देखता
पनप रही पल-पल की पौध।
जाने क्या पाया जीवन ने
क्या खोया कर ले तू याद।
सोचा जितनी बार हुआ है
भीतर ही भीतर अवसाद।

जीत रहा हूँ मैं जीवन को
अथवा हार रहा हर बार।

गए वर्ष को अंक लगाकर
नए वर्ष की कर मनुहार।

नए वर्ष की जन्मकुंडली
सारभूत हैं भाव विभाव।
लग्नराशि संलग्न स्नेह से
ग्रहगण के मन में है चाव।
मुखमंडल पर दीप्त प्रभासित
सूर्य रश्मियों का तप तेज।
अंतर्मन में चंद्र विमोहन
प्रीति प्रेम को रहा सहेज।

बाँच रहा हूँ भाग्य भवन को
जिससे आगत का उपहार।
गए वर्ष को अंक लगाकर

नए वर्ष की कर मनुहार।

किशोर कल्पनाकांत

  

भाव विभोर

आई फिर से वही इक भोर
छटा ले मनभावन-चितचोर
ठिठुर कर सर्द भई कमज़ोर
लगी अब पंछियों में भी होड़
उड़े सपनों की लिए वे डोर
कि आई फिर से वही एक भोर!
आडंबर कंबल काले का छोड़
त्याग अँधियारे का वह मोह
जिसका है कोई ओर न छोर
फैला स्वर्णिम-ज्योत्सना की ज्योत
अंबर खिला ओजस लिए चहुँ ओर
कि आई फिर से वही इक भोर!
धरा भई राधा सुमन अनमोल
अनायास ही नाचा मन का मोर
स्पंदन प्रकृति संग यों जोड़
निखरा हर आँगन नंद-किशोर
करने नव-वर्षाभिनंदन का उद्घोष
कि आई फिर से वही इक भोर!
ले सत्-अच्छाई का निचोड़
ठगी और पूर्वाग्रह का मुँह तोड़
करें सिर्फ़ भलाई अब ज़ोर-शोर
समर्पित नव वर्ष सहर्ष सराबोर
आओ करें आलिंगन सहज-विभोर
कि आई फिर से नई इक भोर!

दिव्यांग पुरोहित
1 जनवरी 2008

 
 

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