एक वर्ष ने और विदा ली
एक वर्ष आया फिर द्वार।
गए वर्ष को अंक लगाकर
नए वर्ष की कर मनुहार।
आता है कुछ लेकर प्रतिदिन
जाता है कुछ देकर बोध।
मैं बैठा चुपचाप देखता
पनप रही पल-पल की पौध।
जाने क्या पाया जीवन ने
क्या खोया कर ले तू याद।
सोचा जितनी बार हुआ है
भीतर ही भीतर अवसाद।
जीत रहा हूँ मैं जीवन को
अथवा हार रहा हर बार।
गए वर्ष को अंक लगाकर
नए वर्ष की कर मनुहार।
नए वर्ष की जन्मकुंडली
सारभूत हैं भाव विभाव।
लग्नराशि संलग्न स्नेह से
ग्रहगण के मन में है चाव।
मुखमंडल पर दीप्त प्रभासित
सूर्य रश्मियों का तप तेज।
अंतर्मन में चंद्र विमोहन
प्रीति प्रेम को रहा सहेज।
बाँच रहा हूँ भाग्य भवन को
जिससे आगत का उपहार।
गए वर्ष को अंक लगाकर
नए वर्ष की कर मनुहार।
किशोर कल्पनाकांत
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