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नव वर्ष अभिनंदन

नया सवेरा

         

चाँद सितारे सूरज धरती पर ले आना है
नए क्षितिज पर
नया सवेरा आज उगाना है।
छोड़ निशा के अहम आवरण अपने भीतर के
अंधियारे से चलकर
उजियारे तक आना है।

किरण-किरण को संचित करके उसकी उर्जा को
घर-घर जाकर वंचित
लोगों तक पहुँचाना है।

दहक-दहक जल रही व्यथाएँ जिनके अंतर में
उनके अधरों तक गंगाजल
को पहुँचाना है।

अपने पथ का अडिग अटल ध्रुवतारा बनकर के
हर भूले राही को उसकी
राह दिखाना है।

जिनके पथ निस्सार निराशा जिनको घेरे हैं
उनके मन में आशाओं के
दीप जलाना है।

समरसता की राह सहज है अपने कर्मों से
मानवता को शिखर तक
लेकर जाना है।

डॉ. अजय पाठक

  

शुभकामनाओं का
मंगल गान

कोहरे के आगोश से निकलकर
सूरज की नूतन किरणों ने
कड़कड़ाती ठंड से
कंपकपाते चेहरों पर
तपिश की खुशी भर दी

धूप का टुकड़ा
नव वर्ष का संदेश ले
मुंड़ेरों से उतर कर
छत और आँगन में
छा गया

नवल रश्मियों का अभिनंदन
करती धरा
फैला रही हरीतिमा की चादर

बिख़ेर मोतियों का सागर

नव वर्ष की बेला
कलिकाओं ने पट खोला
भ्रमरों ने किया
शुभकामनाओं का
मंगल गान

बृजेश कुमार शुक्ला

नए साल में

नए साल में
लिखूँगा एक पूरी कविता
गाऊँगा पूरे स्वर में कोई मुक्तिगान
ढूँढूँगा कुछ पूरे दोस्त
भले नया न हो पर देखूँगा
एक पूरा सपना
जीना चाहूँगा एक पूरी ज़िंदगी
भटकूँगा पूरेपन की तलाश में
पूरे साल।

अशोक कुमार पांडेय

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