चाँद सितारे सूरज धरती पर ले आना है
नए क्षितिज पर
नया सवेरा आज उगाना है।
छोड़ निशा के अहम आवरण अपने भीतर के
अंधियारे से चलकर
उजियारे तक आना है।
किरण-किरण को संचित करके उसकी उर्जा को
घर-घर जाकर वंचित
लोगों तक पहुँचाना है।
दहक-दहक जल रही व्यथाएँ जिनके अंतर में
उनके अधरों तक गंगाजल
को पहुँचाना है।
अपने पथ का अडिग अटल ध्रुवतारा बनकर के
हर भूले राही को उसकी
राह दिखाना है।
जिनके पथ निस्सार निराशा जिनको घेरे हैं
उनके मन में आशाओं के
दीप जलाना है।
समरसता की राह सहज है अपने कर्मों से
मानवता को शिखर तक
लेकर जाना है।
डॉ. अजय पाठक
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