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नव वर्ष अभिनंदन

एक साल गया, आया है नया

          एक साल गया
आया है नया।
बच्चों को संग लिये
निकली है बया।
घोंसले से बाहर
कोहरे के पार पंख फैलाए
एक बड़ा, एक नीला आसमान है।

माना था गर्द
और बहुत दर्द।
पलकों पर आ जमा
मौसम भी सर्द।
एक घुप्प सफ़ेद अंधेरे
ठिठुरन के घेरे से बहुत ज़्यादा
दो हथेलियों की उष्मा में जान है।

बीता सो बुलबुला
शबनम में सब धुला।
एक हवा पत्तों को
आज भी रही झुला।
एक किरण पास आ
ज़ख्म सहलाती है हौले से गाती है
हौसले के पंखों में अभी... लंबी उड़ान है।
 

-अभिरंजन कुमार

 

फिर आया है साल नया

झुर्री गिनता ठक ठक लाठी
बूढ़ा हो ये साल गया, अब
फिर आया है साल नया

कुछ बदला कुछ एक रहा
हाँ, कोई हँसा और कोई झरा
कभी उठी आँधी जब घर में
पनपा इक अंगार नया

फिर आया है साल नया

कभी चली जो तेज़ हवाएँ
कहीं जली धू धू शिखाएँ
कई शान से मर मिटे और
कोई बना अवतार नया

फिर आया है साल नया

आँसू और चीख़ें दहलाती
लाल रक्त गलियाँ नहलाती
कई स्वप्न टूटे लेकिन फिर
कहीं बना संसार नया

फिर आया है साल नया

क्षण में फिर रहने की बारी
प्रण कुछ कर सकने की बारी
आने वाला समय सजा फिर
नये रूप में, साज नया

फिर आया है साल नया

मानोशी

 

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